यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च |
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृति: सा पार्थ तामसी || 35||
यया-जिससे; स्वप्नं-स्वप्नम्; भयम्-भय; शोकम्–शोक; विषादम्-दुख; मदम्-मोह; एव–वास्तव में; च-और; न कभी नहीं; विमुञ्चति-त्यागती है; दुर्मेधा-दुर्बुद्धि; धृति:-संकल्प; सा-वह; पार्थ-पृथापुत्र, अर्जुन; तामसी-तमोगुणी।
BG 18.35: दर्बद्धिपूर्ण संकल्प जिसमें निंदा, भय, दुःख, मोह, निराशा और कपट का त्याग नहीं किया जाता उसे तमोगुणी घृति कहा जाता है।
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अज्ञानी और अहंकारी लोगों में भी दृढ़ता पायी जाती है। लेकिन यह एक प्रकार का हठ है जो भय, निराशा और अहंकार के कारण उत्पन्न होती है। उदाहरणार्थ कुछ लोग भय से ग्रस्त होते हैं और वे इसके इतनी दृढ़तापूर्वक जकड़े रहते हैं, जैसे कि यह उनके व्यक्तित्त्व का अविभाज्य अंग है। कुछ लोग अपने जीवन को इसलिए नारकीय बना देते हैं क्योंकि वे अपनी अतीत की निराशाओं के साथ संसक्त रहते हैं। वे जानते हैं कि इससे उनके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा किन्तु फिर भी वे उन्हें भुलाना नहीं चाहते। कुछ लोग ऐसे लोगों से झगड़ा करने में लगे रहते हैं जो उनके अहम् को ठेस पहुँचाते हैं और उनके विचारों के विरूद्ध चलते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि इन विषयों पर आधारित धृति अर्थात् संकल्प तमोगुणी होता है।